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राम मंदिर मामला : मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, कहा – हम इतिहास नहीं बदल सकते

सेंट्रल डेस्क, साहुल पाण्डेय : राम मंदिर मामले को लेकर मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले को लेकर बुधवार को सुनवाई की। अपना फसला सुरक्षित रखने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कोई स्पष्ट नहीं किया कि वह इस पर फैसला कब सुनाएगी। आज की सुनवाई के दौरान एक ओर जहां मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता करने को लेकर तैयार दिखा, वहीं हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने इस पर सवाल उठाए। हिंदू महासभा की ओर से कहा गया कि जनता मध्यस्थता के फैसले को नहीं मानेगी।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछली बार इस मामले की सुनवाई को लेकर सुझाव दिया था कि दोनों पक्षकार बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें और इस मामले में अगर एक फीसदी भी बातचीत की संभावना हो तो उसके लिए कोशिश करनी चाहिए।

मध्यस्थता के लिए तैयार मुस्लिम पक्ष, हिन्दुू महासभा ने किया इंकार

सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा ने मध्यस्थता को लेकर सवाल किए और कहा कि जनता इस इस फैसले को नहीं मानेगी। हिन्दू महासभा की इस बात को लेकर संविधान पीठ कहा कि आप कह रहे है कि इस मसले पर समझौता नहीं हो सकता। जस्टिस बोबड़े ने हिंदू महासभा से कहा- आप कह रहे हैं कि समझौता फेल हो जाएगा. आप प्री जज कैसे कर सकते हैं? संविधान पीठ ने आगे कहा कि यह केवल जमीन का विवाद नहीं है, यह भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह दिल दिमाग और हीलिंग का मसला है। इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से हीं इस मसले का कोई हल निकाला जा सके।

जस्टिस बोबड़े ने इस दौरान कहा कि जो पहले हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं हे। हमें इसपर बात करना चाहिए कि अब इस विवाद में क्या है। कोई उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मन्दिर, मस्जिद और इतिहास को बदल नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि बाबर था या नहीं, वो किंग था या नहीं ये सब इतिहास की बात है। सिर्फ आपसी बातचीत से ही बदल सकता है।

इस दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा कि यह मध्यस्थता गोपनीय होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। उन्होंने इस मसले पर मीडिया में टिप्पणियां नहीं करने की भी हिदायद दी और साथ ही इस पूरी प्रक्रिया की रिपोर्टिंग भी नहीं किए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे अवमानना घोषित किया जाए।

साथ ही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से संकल्प की वांछनीयता एक आदर्श स्थिति है। लेकिन असल सवाल यह है कि ये कैसे किया जा सकता है? मध्यस्थता का मकसद पक्षकारों के बीच समझौता कराना है। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि हम मध्यस्थता के लिए खुले हैं।

BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनवाई के दौरान कहा कि मध्यस्थता के कुछ पैरामीटर हैं और उससे आगे नहीं जा सकता। उन्होंने 1994 में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया, जिसमें पासिंग रिमार्क था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा नहीं है। वहीं रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि अयोध्या का मतलब राम जन्मभूमि है। यह मामला बातचीत से हल नहीं हो सकता। साथ ही कहा कि मस्जिद किसी दूसरे स्थान पर बन सकती है।

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