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हमारा संघर्ष किसी खास राजनीतिक दल से नहीं अपितु पुल निर्माण को निष्क्रिय नेताओं के प्रति है: संजय सिंह पुल निर्माण संघर्ष संयोजक

मोहम्मद हसनैन- मैं कोई नेता नहीं और नेतृत्व की कोई क्षमता और भावना भी नहीं रखता मेरी धारा आपको विपरीत लगती होगी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मुझे आप नेताओं की पुल निर्माण के प्रति उदासीनता समझ से परे दिखती है  । चुनाव आ रहा है आपको सत्ता की तरफ बढ़ना है और हमें तीन पीढ़ियों का सपना साकार कराना है । अदौरी खोडी पाकर पुल निर्माण के माध्यम से निश्चित रूप से आप नेता गण और कार्यकर्ता गण अपनी तरफ माहौल को खींचने का प्रयास करेंगे केंद्र और राज्य का विकास दिखा तथा विभिन्न राजनीतिक पैंतरा को यूज कर जनता को वोट के लिए आकर्षित करने का प्रयास करेंगे और हम संघर्षकर्ता उसी जनता को एकजुट कर अपनी मांग की तरफ सत्ता नेता का ध्यानाकर्षण का प्रयास करेंगे । निश्चित रूप से आप की कार्यशैली और हमारी कार्यशैली में जो अंतर दिखेगा वहां अंतर जायज है क्योंकि आप को कैसे भी वोट चाहिए और हमें कैसे भी इस पुल निर्माण के सपनों को साकार करना है ।

निश्चित रूप से राजनीतिक दल और संघर्ष दोनों की आशाएं जनता जनार्दन पर ही टिकी है की जनता किसको समझ पाती है और किसको समझना चाहती है  ।  एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो अब तक आश्वासन देते रहे हर 5 सालों में लेकिन धरातल पर कार्य दिखा नहीं वहीं दूसरी तरफ पुल निर्माण संघर्ष है जो पहली बार 1 वर्षों से लोगों को एकत्रित करने का प्रयास कर रही है । इस बहुप्रतीक्षित पुल निर्माण की मांग को लेकर अब तक उम्मीद जिन जिन नेताओं से थी लगभग समाप्त हो चुकी है अब उम्मीद का दिया केबल नोटा के रूप में टीम टीम करता दिख रहा है । जनता अगर इसमें अपने समर्थन का घी डालती है और नोटा का लपट बढ़ता है तो पहली बार ऐसा होगा कि इस पुल का मांग प्रखर रूप से दर्ज होगा लोकसभा चुनाव में नोटा का प्रयोग अगर बृहद पैमाने पर शिवहर सीतामढ़ी मोतिहारी में हुआ तो निश्चित रूप से इस पुल के प्रति राज्य एवं केंद्र सत्ता का ध्यानाकर्षण होगा और तमाम नेशनल मीडिया तक यह मांग पहुंच जाएगी और पुल का निर्माण संभव हो जाएगा ।

लेकिन अगर जनता फिर से बहकावे में आई जात पात और राजनीतिक दल के पैमाने पर वोट हुआ तो इस पुल निर्माण की मांग फिर एक बार पिछड़ जाएगी और हमें और लंबा संघर्ष करना होगा  । इस बात में कोई शक और सुबह नहीं है की अगर जनता बड़े पैमाने पर नोटा का प्रयोग नहीं कर पाई तो नेताओं का मनोबल निष्क्रियता एवं उदासीनता की दिशा में  बढ़ेगा और इस पुल निर्माण का संघर्ष और कठिन हो जाएगा लेकिन यह कहने का कोई औचित्य नहीं की कठिन हो जाएगा ।

तो हम संघर्ष नहीं करेंगे हम संघर्ष तब भी करेंगे और आज भी कर रहे हैं जिस दिन आम जनता बड़े पैमाने पर नोटा के माध्यम से ध्यानाकर्षण का ताकत समझ जाएगी उसी पल पूल का निर्माण संभव हो जाएगा इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जनता किसकी रैली में कब कब और कहां कहां पहुंचती है लेकिन इस बात से फर्क पड़ता है की गुप्त मतदान में इस पुल के लिए नोटा के साथ खड़ी होती है या नहीं होती है हमारा कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है किसी क्षेत्र विशेष से कि वहां विकास हो रहा है यहां क्यों नहीं ।

और ना ही किसी नेता विशेष का नुकसान करने संघर्षशील हैं हम हम तो संघर्ष कर रहे हैं शिवहर सीतामढ़ी और मोतिहारी को आपस में जोड़ने वाली मां जानकी की जन्मभूमि को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म भूमि को जोड़ने वाली और दिल्ली तक का सफर सड़क मार्ग से 160 किलोमीटर कम करने वाली पुल निर्माण के लिए लेकिन अंतिम फैसला जनता को ही करना है की संघर्ष का तरीका जायज है या राजनीतिक दल को वोट यह तमाम बातें हैं अदौरी खोडी पाकर पुल निर्माण संघर्ष के संयोजक संजय सिंह ने कही जो इस पुल निर्माण के लिए संकल्प के रूप में अपनी दाढ़ी को बढ़ा रहे हैं यहां तक कि अपने पिता के पहली पुण्यतिथि में भी इसको साफ नहीं करवाया और आजीवन दाढ़ी और आजीवन संघर्ष पुल निर्माण होने तक संकल्पित है  ।

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