सेंन्ट्रल डेस्क, कौशल कुमार: इस बार के गणतंत्र दिवस पर पहली बार आज़ाद हिंद फौज के क्रांतिकारीयों को गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा बनाया गया हैं । भारत में सुभाष चंद्र बोस के आजादी वाले बलिदान को नजर अंदाज किया गया । लेकिन सत्य को कभी दबाया नहीं जा सकता । आजादी के 71 वर्ष बाद भी भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज की यादों को देश की राजधानी में 1 नया घर दिया हैं । उसी लाल किले में क्रांति का निर्माण किया गया हैं । जहां कभी अंग्रेज राष्ट्र भावनाओं को दफनाने की कोशिश की थी । आपको याद होगा की जिस तरह अंग्रेजों ने INA के खिलाफ रेड फोर्ट ट्रायल करवाया था
आज़ाद हिंद फौज के सैन्य अधिकारीयों के खिलाफ झुठा मुकदमा चलाया था । उसी लाल किले के प्राचिन में सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय का उदघाटन कर प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र को समर्पित करेंगे ।
1943 मे ब्रिटेन विश्व युध्द में जीत की ओर बढ़ रहा था । भारत छोड़ो आंदोलन को पुरी तरह कुचल दिया गया था । एसे कठिन दौर मे भी 30 दिसम्बर 1943 को जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का अंडमान निकोबार पर कब्जा हो गया था । और पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने गुलाम भारत में तिरंगा फहराया था ।
ब्रिटीश राज के रहते हुए आजाद हिंद सरकार बनाई थी । आज़ाद हिंद फौज के तीन ऑफिसर 1 प्रेम सेहगल 2 गुरूबक्छ सिंह ढिल्लन और 3 सहनवाज खान पर जब झुठा मुकदमा चलाया गया था तो सहनवाज खान ने बताया था कि वो पहले ब्यक्ति थें जिन्होंने भारतीय के होने का एहासास उनके मन में जगाया । सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी नेता थें उनका लक्ष्य भारत की आजादी था । राजनेता कुटनीतिज्ञ होने के साथ ही वे एक स्पष्ट वक्ता भी थें । 1939 में उन्होंने फौर्वड ब्लाक की स्थापना की 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में एक समारोह मे रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान नेता जी को सौंप दी । इसके बाद आजाद हिंद के सेनापति की हैशियत से स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बनाईं जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपिंस, कोरिया, चीन ,ईटली ,आयरलैंड समेत 9 देशों ने मान्यता भी दे दी थीं ।
उन्होंने अपनी रेजीमेंट में महिलाओं को भी शामिल कर रखा था । जीसकी कमान कैप्टन लक्ष्मि स्वामीनाथन के हाथों में थी । इसे रानी झाँसी रेजीमेंट भी कहा जाता था।