सेट्रल डेस्क, साहुल पाण्डेय: आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए देश की सरकार कश्मीर में एक्शन मोड में है। प्रधानमंत्री मोउी की सरकार ने पाकिस्तान में जैश के कैंपों पर एयरस्ट्राइक करने के तुरंत बाद कश्मीर में फल रही आतंकवादी विचारधारा पर भी स्ट्राइक किया हैं केन्द्र की सरकार ने घाटी में संचालित जमात—ए—इस्लाम जम्मू कश्मीर को बैन कर दिया है। वहीं अब सरकार इस संगठन की संपत्ति को भी खंगाल रही है। लेकिन सरकार के इस कदम के विरोध में काश्मीर की पूर्व सीएम और बीजेपी की पुरानी सहयोगी पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ति आ गई है।
जम्मू—कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती जमात—ए—इस्लाम जम्मू कश्मीर पर पाबंदी लगाने के केन्द्र सरकार के फैसले को लेकर अब सड़ पर उतर आईं है। महबूबा ने आज श्रीनगर में अपने पार्टि के समर्थकों संग सरकार के इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन किया। इससे पहले जब सरकार ने जमात—ए—इस्लाम पर पाबंदी लगाई तो महबूबा उन लोगों में पहली थी जिन्होंने इसका विरोध किया। पूर्व सीएम ने सबाल किया कि किस आधार पर एक ऐसे संगठन को बैन कर दिया गया जिसने
कश्मीरियत की सेवा की है। उन्होंने अपने ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा कि क्या एंटी बीजेपी होना ही एंटी नेशनल होना है?
Why is GoI so uncomfortable with Jamaat e Islami? Radicalised Hindu groups representing fringe elements are given carte blanche to spread misinformation & vitiate the atmosphere. But an org that has worked tirelessly for Kashmiris is banned. Is being anti BJP anti national now?
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) March 1, 2019
Democracy is a battle of ideas , crackdown followed by banning of Jammat Islami (jk) is condemnable , another example of high handedness and muscular approach of GOI to deal with political issue of J&k .
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) March 1, 2019
महबूबा ने सरकार के इस कदम को हिन्दु और मुस्लिमो के बीच दुरिंया बांटने वाला बताया था। उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र में विचारों के बीच द्वंद हाता रहता है लेकिन इस तरह इस संगठन को बैन करना सही नहीं है। उन्होंने सरकार पर हथियार और ताकत के बल पर जम्मू—कश्मीर मसले को हल करने का आरोप लगाया।
सारे अलगाववादी नेता जमाते से जुड़े रहे है।
आपको बता दें कि मोदी सरकार में घाटी में संचालित संगठन जमात—ए—इस्लाम को बंन कर दिया है। सरकार की माने तो यह संगठन आतंकवाद को वैचारिक रुप से मजबूत करता है। अलगाववादी खेमे के सियासी दलों में काफी कैडर और कई प्रमुख नेता जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे हैं या फिर जमात के आशीर्वाद से सियासत को आगे बढ़ाते रहे। यासीन मलिक, शौकत बख्शी, शकील बख्खी, शब्बीर शाह, मुख्तार वाजा, कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी, नईम खान, मोहम्मद अशरफ सहराई, मसर्रत आलम, शाहिद उल इस्लाम समेत सभी प्रमुख नेता जमाती रह चुके हैं। जमात 1990 के बाद चुनाव में नहीं उतरी पर उसका अपना सियासी एजेंडा रहा। वर्ष 2002 और उसके बाद हुए चुनावों में जमात ने कभी भी स्पष्ट रुप से चुनाव बहिष्कार का एलान नहीं किया।
बताते चलें कि जमात का राजनीतिक एजेंडा रहा है। यह सभी जानते हैं। वह चुनावी सियासत में हिस्सा लेती रही है और जब उसे लगा कि वह अपने झंडे के साथ चुनावी सियासत में पूरी तरह कामयाब नहीं होगी तो उसने विभिन्न राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बनाई। जमात पर प्रतिबंध आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान नेकां, पीडीपी, पीडीएफ, एआइपी जैसे दलों का बड़ा मुद्दा होगा। सभी इस प्रतिबंध को हटाने का यकीन दिलाते हुए वोट मांगेंगे।