आजादी के काफी समय पश्चात भारत में नोटों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीरों का इस्तेमाल शुरू हुआ था वही पाकिस्तान में कायद-ए-आजम के फोटो को छापने की शुरुआत साल 1957 में ही हो गई थी। बता दें कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने 24 दिसंबर, 1957 को पहली बार पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की तस्वीर को 100 रुपये के नोट पर छापा था। जो कराची, लाहौर और ढाका से जारी किए गए थे। वही अपने शासनकाल के दौरान पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने करंसी नोटों पर से जिन्ना की तस्वीर को हटाकर अपनी तस्वीर छापने की चाल चली थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया
पाकिस्तानी नोटों पर जिन्ना की तस्वीर को लेकर भड़के उलेमा, मुशर्रफ ने भी रची थी नापाक साजिश
रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान का यह पहला करंसी नोट था जिसमें किसी इंसान की तस्वीर थी। वही जिन्ना की तस्वीर छपते ही पाकिस्तान में बवाल मच गया था। पाकिस्तानी उलेमा और अन्य लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया था। इसके अलावा पाकिस्तान के सेंट्रल जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल हमीद बदायूंनी ने इसका जोरदार विरोध किया था। उन्होंने कहा कि जिन्ना को डाक टिकट तक पर भी अपनी तस्वीर पसंद नहीं थी।
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पाकिस्तान सरकार का कदम ‘मुस्लिम भावना का अपमान’
मौलाना के अनुसार अपने जीवन काल में जिन्ना ने डाक-टिकटों पर चांद और तारों या किसी पाकिस्तानी इमारत की तस्वीर को लगाना उचित समझा था। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान दस्तूर पार्टी के अध्यक्ष मौलाना असद-उल-क़ादरी ने पाकिस्तान सरकार के इस कदम को ‘मुस्लिम भावना का अपमान’ बताया था। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से गैर इस्लामी तरीका है। इसके अलावा मौलाना असद ने लोगों से अपील की थी कि वे जिन्ना की तस्वीरों वाले नोटों का बहिष्कार करें
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वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को भी नोटों पर जिन्ना की तस्वीर पसंद नहीं थी बल्कि वह उनकी जगह अपनी तस्वीर को छपवाना चाहता था। बता दे की 2010 में पाकिस्तान के पूर्व पीएम मीर जफरुल्ला खान जमाली ने खुद इसका खुलासा किया था। जमाली ने मुशर्रफ की इस योजना का विरोध कर उसे मानने से इनकार कर दिया था। जमाली के अनुसार उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि किसने मुशर्रफ को नोटों पर अपनी तस्वीर छपवाने का सुझाव दिया था
व्यापारियों ने भी किया जिन्ना की तस्वीर को लगाने का विरोध
बता दें कि जिन्ना की तस्वीर को लगाने का विरोध पाकिस्तान के मौलानाओं के साथ साथ वहां के व्यापारियों ने भी किया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरगोधा में 8 धार्मिक और अन्य दलों के नेताओं ने जिन्ना की तस्वीर छापने को पाकिस्तान के संविधान के दिशानिर्देशों और उसकी मूल भावना के खिलाफ बताया था। और उन्होंने किसी व्यक्ति की तस्वीर छापने की प्रथा का विरोध किया था।