सेंन्ट्रल डेस्क, साहुल पाण्डेय। देश में लोकसभा चुनावों को लेकर तारीखों का एलान हो चुका है। चुनाव की तारीखों के एलान होने के बाद पूरे देश में आचार संहिता लागू हो गई है। यानि सारा कमान अब चुनाव आयोग के हाथो में है। देश की हर पालिटिकल एक्टीविटी पर चुनाव आयोग की नजर है। लेकिन भारतीय प्रजातंत्र में एक ऐसा भी समय आया जब चुनाव आयोग सिर्फ नाम मात्र का ही रह गया था। आचार संहिता के उल्लंघन की खबरे आम थी। लेकिन भारत की चुनावी प्रक्रिया को एक शख्स ने फिर सुधारा। उस शख्स का नाम है टीएन शेशन । पूर्व चुनाव आयुक्त ने चुनाव आयोग को एक नई जान दी। उनके कारण ही चुनाव आयोग को अपनी ताकतो का एहसास हुआ। अगर आज सरकार से लेकर सरकारी नौकर तक चुनाव आयोग द्वारा लागू किए गए आर्दश आचार संहिता का पालन कड़ाई से करते हैं तो इसका पूरा श्रेय टीएन शेशन को ही जाता है।
चुनाव आयोग को पटरी पर लाने के लिए काम
पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेशन ने भारतीय चुनाव प्रणानी को पारदर्शी और आदर्श बनाने को लेकर कई काम किए। आज जिस चुनाव वोटर आई कार्ड को वोट डालने के लिए उपयोग करते है वह शेशन की ही देन है। आज भारत में 99प्रतिशत लोगों को पास वोटर आई कार्ड है। पूर्व चुनाव आयुक्त की कड़ाई के कारण ही देश भर में आचार संहिता का सख्ती से पालन होने की परंपरा शुरू हो सकी। उनके ही काल में पर्यवेक्षकों को काम की अजादी मिल सकी। उनके कामों का नतीजा है कि भारतीय वोटरो में चुनाव को लेकर लोकप्रियता बढ़ी और लोगों का भरोसा लोकतंत्र में दोबारा से स्थापित हो सकी है।
पूर्व चुनाव आयुक्त ने किए ये खास काम
चुनाव पहचान पत्र : आज देश में लगभग 99 प्रतिशत लोगों के पास वोटर आईडी कार्ड है। अगर इस बात का श्रेय किसी को जाता है तो वो शेशन ही है। उनके ही कार्यकाल में इसे लेकर काम शुरू हो सका और 1996 में इसका प्रयोग होना शुरू हो सका। इस वोट्रर कार्ड के कारण ही फर्जी वोटिंग पर रोक लग सकी। आपको बता दे कि 90 के दशक में बिहार , यूपी और दिल्ली जैसे जगहों पर यह बात आम थी कि किसी और का वोट कोई और डाल दिया करता था।
आचार संहिता का पालन : शेशन ने ही चुनाव आयोग को उसकी ताकत का एहसास कराया। उनके आयुक्त बनने के बाद ही कागजों में धूल फांकती आचार संहिता को कड़ाई से लागू कराने में सफलता मिल सकी। इससे आगे चल कर फायदा यह हुआ कि चुनाव प्रचारों के दौरान नेताओं कि मनमानी पर लगाम लगी, अगर वे ऐसा करते थे तो उन्हे कड़े परिणाम भी भुगतने कि लिए तैयार रहना पड़ा। इसी के कारण रात के 10 बजे के बाद चुनावों के प्रचारों पर रोक लग सकी। वहीं कैडिडेटों के लिए चुनावों के दौरान चुनाव को लेकर आए खर्च का ब्योरा देना अनिवार्य हो सका।
पर्यवेक्षक बनना:— चुनाव के दौरान नेताओं की मनमानी का रोकने के लिए ही पर्यवेक्षकों की तैनाती को सख्ती से लागू करने का श्रेय भी पूर्व चुनाव आयुक्त को ही जाता है। इसका परिणाम यह हुआ कि हिंसा रुकी और नौकरशाही को काम करने की आजादी मिल सकी। 1995 के बिहार चुनाव को इसी के लिए याद किया जाता है। उनके इस कदम से बुथ कैपचरिंग जैसी वारदातों पर लगाम लग सकी।
केन्द्रीय बलों कि तैनाती :— राज्य मशीनरी का दुरपयोग रोकने के लिए केन्द्रीय बलों की तैनाती को प्रभावी बनाया गया। पूर्व चुनाव आयुक्त के इस कदम से पुलिस के बुते राज्यों में मनमानी करने की नेताओं की हरकतों पर अंकुश लगाया जा सका।
वोटर्स का रखा ध्यान :— लोकतंत्र में सबसे जरुरी होती है जनता यानी कि मतदाता। अगर ये मतदाता वोट न दे तो चुनाव की प्रक्रिया ही ठप हो जाएगी और लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। इस बात को पूर्व चुनाव आयुक्त भलीभांती समझते थे। इस लिए उन्होंने इस काम को तरहीज दी कि जनता के का विश्वास चुनावी प्रकिया में बढ़या जा सके। उन्होंने वोटर्स को निर्भिक बनाने के लिए उन्होंने वोटों की गिनती से पहले उन्होंने वोटों के मिक्सिंग के आदेश दिए ताकी नेता जीतने के बाद वोटर्स के प्रति बदले की कार्रवाई न कर सके।
आपको बता दें कि टीएन शेशन आजाद भारत की पहली एडमिनिसट्रेटिव सर्विस की परीक्षा में टॉपरों में से एक थे। उन्हें भारत के चुनाव आयेग के 10वें अध्यक्ष के रुप में साल 1990 में नियुक्त किया गया। वे इस पद पर 1996 तक बने रहे।