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भारत का चीन को नया झटका; ताइवान के साथ सील की नयी ट्रेड डील

चीन के लिए साल 2020; कई मायनों में ख़राब रहा है। चाहे Covid-19 हो या दक्षिण चीन सागर में हुई फ़ज़ीहत, चाहे नेपाल में हुई सरगर्मी हो या ताइवान का पलटवार।

आस्ट्रेलिया से लेकर जापान तक और आर्मेनिया के युद्ध से लेकर अमेरिकी चुनाव और शेयर बाज़ार तक, हर जगह चीन के फ़ज़ीहत ही हुई है। यहाँ तक की ऐसा पहली बार हुआ है की किसी बड़े देश ने WHO जैसी वैश्विक संस्था से अमरीका ने अपना नाम वापस ले लिया।

लेकिन अगर बात भारत की करें तो चीन को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया है। भारत ने समूचे विश्व को यह भी दिखाया की कैसे एक शांतिप्रिय देश को कमजोर आंकने की गलती भारी पर सकती है। इस बात का स्पष्ट संदेश चीन ने भी अपनी बदली नीति, उभरती कमज़ोरियों को छुपाने के लिए किए गए प्रोपोगैंडा विडीओज़ से भी दिया है।

इसी कड़ी में भारत ने अपनी ACT-EAST निति के तहत ट्रेड डील साइन करने के साथ ही ताइवान की तरफ़ एक मज़बूत हाथ बढ़ाया है।

भारत के इस कदम के कई मायने निकाले जा रहे हैं। मज़े की बात यह है की हर मायना चीन को अलग तरीक़े से चोट पहुँचाता दिख रहा है।

क्या हैं मायने

ताइवान क़ी तरफ भारत का ट्रेड डील से पहले तो चीन की ONE-CHINA पॉलिसी की हवा निकल गयी है। गौर तलब है कि दक्षिण एशिया में चीन और भारत ही केवल दो बड़े देश हैं। वैश्विक अर्थनीति के लिए ये दोनों देश अपनी जनसंख्या को लेकर केंद्र मि रहते हैं। इसी बात का फ़ायदा उठा चीन ने काफ़ी समय से अपने पड़ोसी देशों को परेशान करने के साथ ही हड़प लिया। और इसे नाम दिया ONE-CHINA पॉलिसी। इसी पॉलिसी में ताइवान को भी चीन अपना हिस्सा मानता है और अन्य सभी देशों को ताइवान से जुड़े मामले में ना पड़ने की सलाह देता है।

लेकिन हाल ही में ताइवान के कड़े रुख़ से साफ़ कर दिया की वह भी चीन की ONE-CHINA पॉलिसी के ख़िलाफ़ है। भारत ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए ताइवान से साथ ट्रैडे डील साइन की। जिसका सीधा अर्थ है कि भविष्य में भारत ताइवान को संप्रभु देश की मान्यता दे सकता है

दूसरी तरफ़, चीन से आयात होने वाले सस्ते सामान भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए ख़तरा साबित हो रहे हैं। ऐसे एलेक्ट्रोनिक सामान भी अब चीन की जगह ताइवान से आयात होंगे। ना सिर्फ़ आयात होंगे बल्कि ताइवान अपनी कम्पनियों को चीन से हटाकर भारत में लगा सकता है

ताइवान का यह कदम एक तरफ़ चीन को बड़ा नुक़सान देगा वहीं दूसरी तरफ़ भारत में रोज़गार के नए अवसर और निर्यात की गुणवत्ता भी बढ़ाएगा।

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