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TMBU के शिक्षकों ने हिंदी की प्रासंगिकता और उपेक्षिता को लेकर दिया अपना बयान

हिंदी दिवस

भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है जोकि केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को बढ़ावा देने और लोगों को उसका महत्व समझाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी कई ऐसे सरकारी कार्यालय हैं जहां पर कि अभी भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

सरकार के निर्देश होने के बावजूद भी हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने के आदेश का पालन नहीं किया जाता है।

TMBU में हिंदी दिवस

बता दें कि टीएमबी यू के कुलपति हिंदी के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर रहे हैं इसके बावजूद भी वहां पर हिंदी को उपेक्षित कर दिया गया है।

टीएमबी यू में ज्यादातर अधिकारी पत्राचार, अधिसूचना, आदि लगभग सभी काम अंग्रेजी भाषा में कर रहे हैं।

स्थिति में सुधार ही है सत्कार

इस मसले पर टीएमबीयू स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. योगेंद्र का कहना है, कि हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य हो रहे हैं।

इसके तहत यूजीसी को अलग-अलग विषयों पर शोध का प्रस्ताव दिया जाएगा।

भाषा सुधार के लिए भी कक्षाओं में अलग से कार्यशाला आयोजित की जाएगी। आगे उन्होंने बताया कि नेट-जेआरएफ में हिंदी के छात्रों की संख्या बढ़ी है।

जानकारी के मुताबिक पिछले पांच साल में हिंदी के छात्रों में रुचि तो बढ़ी है, लेकिन वैकल्पिक प्रश्नों वाली नेट की परीक्षा के कारण इसका स्तर घटा है जिस पर विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है।

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विशेषज्ञ राय

डा. बहादुर मिश्र

वहीं स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के डा. बहादुर मिश्र ने कहा,” जब तक विश्वविद्यालय के सारे कामकाज हिंदी में नहीं होंगे, तब तक हिंदी का उत्थान संभव नहीं हैं। हम हिंदी की ओर छात्रों को तभी आकर्षित कर सकते हैं, जब विश्वविद्यालय में इसका प्रयोग हो।

इसके लिए सभी अधिकारियों को अपने हस्ताक्षर से इसकी शुरुआत करनी होगी।

तभी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सकेगा। कई बार टीएमबीयू के सामने इसकी मांग की है, लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं देता।”

असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद

हिंदी के प्रचार प्रसार और उपेक्षिता को लेकर असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद ने कहा,” अक्सर हिंदी को लेकर हम भूल करते हैं कि यह राष्ट्रभाषा है, जबकि यह एक राजभाषा है। देश में राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत की तरह कोई राष्ट्रभाषा नहीं है।

वर्तमान में राजभाषा हिंदी का हाल यह है कि बिना अंग्रेजी जाने भारत में सरकारी कामकाज करना या कराना दुष्कर कार्य है। आज अंग्रेजी जीने की एक शर्त बन चुकी है।

इसका सीधा अर्थ है कि हिंदी का महत्व हमारे देश में प्रतीकात्मक ज्यादा और वास्तविकता कम है।”

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