आज मुंशी प्रेमचंद का 125वीं जयंती है। कथा सम्राट का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ था। बचपन में प्रेमचंद का नाम धनपत राय था। लेकिन प्रेमचंद के पिता उन्हें नवाबराय के नाम से बुलाते थे। मुंशी प्रेमचंद नाम की पहचान उनके लेखन की उपलब्धि से मिली थी जब उनकी कहानी संग्रह सोज-ए-वतन को ब्रिटिश शासन ने विद्रोह को बढ़ावा देने वाला मानकर प्रतिबन्धित कर दिया तो उन्होंने प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू किया। प्रेमचंद आजादी से पहले शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर थे। 1921 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी बाद में साहित्य के प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित।
आधुनिकाल के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद और उनके जीवन पर एक नज़र
प्रेमचंद हिंदी के प्रवर्तक रचनाकार है। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। वे सर्वप्रथम उंपन्यासकार थे। जिंहोने उपन्यास साहित्य को तिलिस्म और ऐयारी से बाहर निकालकर उसे वास्तविक भूमि पर ला खड़ा किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल विस्तृत वर्ग की कृतियाँ है। प्रेमचंद की रचना को देश में ही नहीं विदेश में भी आज भी उन्हें उतने ही सम्मान से पढ़ा जाता है। आज उनके साहित्य पर विश्व के उन विशाल जन समूह को गर्व है। जो साम्राजयवाद, पूँजीवाद और और सामंतवाद के संघर्ष का जीता जागता यथार्थ है। प्रेमचंद के लेखन में उस समय का पुरे समाज का इतिहास समाया है जिसे आज भी पढ़ने के बाद उस समय को हुबहु महसूस किया जा सकता है। अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार व्यवहार, भाषा-भाव रहन सहन, आशा-आकांक्षा , दुःख-सुख और सूझ -बुझ को जानना चाहते है तो प्रेमचंद से बेहतर परिचायक आपको नहीं मिल सकता। समाज को विभिन्न आयामों को उनसे अधिक विश्वनीयता से दिखा पाने वाले परिदर्शक को हिंदी उर्दू की दुनिया नहीं जानती है।
प्रेमचंद साहित्य की सबसे बढ़ी खासियत यह थी।
प्रेमचंद ने अतीत का गौरव का राग नहीं गाया, न ही भविष्य की हैरत-अंगेज कल्पना की. वे ईमानदारी करे साथ वर्तमान काल की अपनी अवस्था का विश्लेषण करते रहे। उन्होंने समाज की उथल पुथल परिस्थतियो को गहराई से अनुभव किया था। उनके जीवन अनुभव के दार्शनिक विचार – “जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। जब किसान के बेटे को गोबर में से बदबू आने लग जाए तो समझ लो कि देश में अकाल पड़ने वाला है। अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है। सांप्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है, उसे अपने असली रूप में निकलते हुए शायद लज्जा आती है, इसलिए वो संस्कृति की खाल ओढ़ कर आती है। “इसिलए उनकी रचना के पात्रो में सजीवता आज भी देखी जाती है। रचना में उनके पात्र आज भी जीवित मिलते है उनकी रचना के पात्र वर्तमान समय की समकालीन समस्या से जूझते हुए जीवन से संघर्ष करते हुए आज भी मिलेंगे। इसीलिए उन्हें कलम का सिपाही कहा गया है। प्रेमचंद हिंदी साहित्य जगत के ध्रुव तारा की तरह थे हिंदी साहित्य जगत में उनका स्थान हमेशा सर्वोपरि रहेगा।
EDITOR BY- RISHU TOMAR