सेंट्रल डेस्क, फलक इक़बाल:- सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एक बार फिर आंदोलन करने का ऐलान किया है। वह बुधवार को सुबह 10 बजे महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले स्थित अपने गांव रालेगण सिद्धि में अनशन पर बैठे। उन्होंने मंगलवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधाते हुए कहा कि लोकपाल का कानून बने 5 साल हो गए और नरेंद्र मोदी सरकार पांच साल तक बहानेबाजी करती रही। उन्होंने कहा, ‘नरेंद्र मोदी सरकार के दिल में अगर होता तो क्या इसमें 5 साल लगना जरूरी था?’
अन्ना का कहना है की, ‘ये मेरा अनशन किसी व्यक्ति, पक्ष और पार्टी के खिलाफ में नहीं है। समाज और देश की भलाई के लिए बार-बार मैं आंदोलन करता आया हूं, उसी प्रकार का ये आंदोलन है। ‘आपको ये भी बता दें कि 2011-2012 में अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। इसकी ख़ास बात ये भी है की उस आंदोलन में शामिल कई चेहरे अब सियासत में आ चुके है। जैसे अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, किरण बेदी पुडुचेरी की राज्यपाल नियुक्त हो चुकी हैं। वहीं, अन्ना एक बार फिर अनशन पर बैठने जा रहे हैं। इस बार आंदोलन का स्थान दिल्ली न होकर अन्ना का अपना गांव रालेगण सिद्धि ही है।
देश में लगभग पांच साल पहले 2013 में बड़े आंदोलन के बाद लोकपाल विधेयक पारित हुआ था। लेकिन अब तक लोकपाल नियुक्त नहीं किया जा सका है। कांग्रेस के अंतरगत यूपीए सरकार द्वारा भेजा गया बिल अभी तस पास नहीं हुआ है। जबकि मौजूदा सरकार का भी पांच वर्ष का कार्यकाल लगभग खत्म होने की कगार पर है। अभी मामला सर्वोच्च न्यायालय में लटका हुआ है। इस मामले की सुनवाई को डेढ़ महीने के लिए टाल दिया गया है। देखने वाली बात यह है की जिस तरीके से यह मामला फिलहाल टल रहा है, लोकसभा चुनाव 2019 के बाद आने वाली सरकार इस पर कितना आगे बढ़ पाएगी, इसे लेकर कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है। मगर यह सवाल अभी भी बना रहेगा कि नई सरकार में भी लोकपाल की नियुक्ति मुमकिन होगी या नहीं?
साथ ही आपको यह भी बता दें कि लोकपाल की नियुक्ति को लेकर गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 7 मार्च की तिथि दी है। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने सरकार से लोकपाल नियुक्ति के लिए किए गए प्रयासों की रिपोर्ट भी मांगी है। सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल जांच समिति को ये भी कहा है कि वह लोकपाल और उसके सदस्यों के नामों का चयन करने का काम फरवरी के अंत तक पूरा कर ले। साथ ही चयन समिति के विचार के लिए नामों का एक पैनल भी तैयार करें। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को सर्च कमेटी के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा देने के लिए भी कहा है।
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जानते हैं फिलहाल क्या है लोकपाल की स्थिति?
आज से बैठंगे अन्ना हज़ारे अनशन पर और साथ ही जानिए कहां तक पहुंची लोकपाल की लड़ाई?
लोकपाल बिल को 13 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था। चार दिन बाद 17 दिसंबर 2013 को यह बिल राज्यसभा से पास हो गया था। अगले दिन 18 दिसंबर, 2013 को ये बिल लोकसभा से भी पारित हो गया था। लेकिन अभी तक लोकपाल नियुक्त नहीं हो पाया है।
आपको ये भी बताते चलें कि लोकपाल की खोज के लिए कमेटी बनने के बाद से कोई भी बैठक नहीं हुई है। पिछले साल सितंबर में लोकपाल की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी का गठन किया गया था। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जनवरी को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह सितंबर 2018 से अभी तक लोकपाल खोज समिति के संबंध में उठाए गए सभी प्रयासों पर एक हलफनामा बनाए। जिसमें यह बताया जाए कि समिति गठित करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए है। शीर्ष कोर्ट ने ये हलफनामा अटॉर्नी जनरल के उस जवाब के बाद मांगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि सितंबर 2018 से अभी तक समिति के गठन के लिए कई प्रयास किए जा चुके हैं।
क्या लोकपाल जरूरी है?
पास हुए बिलके मुताबिक लोकपाल के पास चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक के किसी भी जनसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार है। भले ही वह मंत्री हो, सरकारी अफसर, पंचायत सदस्य इत्यादि किसी भी पद पर तैनात हो. लोकपाल जांच के बाद इन सभी की संपत्ति को ज़ब्त भी कर सकता ह। विशेष परिस्थितियों में लोकपाल को किसी आदमी के खिलाफ अदालती सुनवाई करने और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का भी अधिकार है। हालांकि भारतीय सेना लोकपाल के दायरे से बाहर है। लोकपाल बिल को 13 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था। चार दिन बाद 17 दिसंबर 2013 को यह बिल राज्यसभा से पास हो गया था। अगले दिन, 18 दिसंबर 2013 को ये विधेयक लोकसभा से भी पारित हो गया था।