नबीला शगुफी की रिपोर्ट
अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था बगावतों का राग था
कभी वो सिर्फ फूल था कभी वो सिर्फ आग था
वो मुफलिसों से कहता था
कि दिन भी बदल सकते हैं वो जाबिरों से कहता था
तुम्हारे सिर पर सोने के जो ताज हैं
कभी पिघल भी सकते हैं
अजीब आदमी था वो
कैफी आजमी के दामाद और जाने-माने शायर जावेद अख्तर ने कैफी आजमी के बारे में ये शायरी बिल्कुल ठीक ही लिखी है।
कैफी के जन्मदिन पर आज हम उनके बारे में उनसे जुड़ी कुछ बातें जानते हैं। सैय्यद अख्तर हुसैन रिजवी जो कैफी आजमी के नाम से जाने जाते हैं। उर्दू के शायर थे। आजमी शिया फैमिली से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म यूपी के आजमगढ़ जिला में हुआ था। कैफी आजमी की आवाज में एक जादू था जो लोगों को उनकी तरफ मुतास्सिर कर दिया करता था। शायरी सिर्फ लिखी ही नहीं जाती बल्कि पढ़ी भी जाती है और कैफी आजमी इस दोनों कला में ही माहिर थे। मशहूर शायर निदा फाजली ने एक बार बीबीसी को बताया था कि उस जमाने में हिंदी में सबसे प्रभावशाली कविता-पाठ शिवमंगल सिंह सुमन का हुआ करता था। उनमें श्रोताओं को बांध लेने की गजब की क्षमता थी लेकिन उर्दू में उनकी टक्कर का सिर्फ एक ही शायर था और वे थे कैफी आजमी। कैफी की आवाज में इतना जादू था कि जब वो स्टेज पर आते थे उनकी आवाज, उनके हावभाव और उनकी प्रस्तुति अच्छी होती थी कि उनके सामने ऊंची से ऊंची आवाज में शेर सुनाने वाले भी उनके कायल हो जाते थे।
कैफी के गांव में बिजली-पानी की कोई व्यवस्था नहीं होती थी लेकिन उसका असर कैफी आजमी पर कभी नहीं हुआ। कैफी गर्मी भरी दोपहरी में भी नज्में लिखने में मसरुफ रहते थे। कैफी आजमी को अंग्रेजी नहीं आती थी। उनकी बेटी शबाना को कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए उनके दोस्त मुनीश नारायण सक्सेना ने शबाना के पिता बनकर गए थे और तब शबाना को स्कूल में दाखिला मिला। कैफी को महंगी चीजों का शौक नहीं था लेकिन राइटिंग का काम वो हमेशा महंगे म़ॉन्ट ब्लॉ पेन से किया करते थे। वो हमेशा ब्लू-ब्लैक इंक से लिखते थे और अपने कलमों की बहुत देखभाल करते थे। न्यूयॉर्क में एक कलमों का अस्पताल है। वहां उनके कलम मेनटेनेंस के लिए भेजे जाते थे।
कैफी की आजमी की बीवी शौकत आजमी का मानना है कि कैफी जैसे ऊंचे ख्यालातों वाले आदमी को मैंने नहीं देखा वो कभी औरत और मर्द के बीच भेदभाव नहीं करते थे। कैफी को फालिज होने के बाद बीस साल तक जिंदा रहे इस दौरान शौकत आजमी ने उनकी देखभाल की। शौकत खुद कैफी आजमी के सारे काम करती थीं। शौकत कहती हैं कि उनके जैसे चरित्र का आदमी मेरे सामने से आज तक नहीं गुजरा। बीस साल तक फालिज का दर्द सहने के बाद आखिरकार 20 मई 2002 में कैफी ने आखिरी सांसें लीं।