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यूएई में ‘हिन्दी’ को मिला सम्मान, भारत की अदालतों में कब ?

सेंट्रल डेस्क, साहुल पाण्डेय : भारत में भले ही आजादी के 70 सालों के बाद भी हिन्दी को वो सम्मान नहीं मिला हो जिसकी वो हकदार है, लेकिन विदेशों में हिन्दी को सम्मान के नजरिए से देखा जाने लगा है। यूएई ने हिन्दी को अपने न्यायिक प्रक्रिया में तीसरी भाषा के रुप में जोड़ा है। अबू धाबी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया है।

जानकारी के अनुसार अबुधाबी ने अपने यहां रहनेवाले हिन्दी भाषी लोगों को न्यायिक प्रक्रिया से और बेहतर तरीके से जोड़ने को लेकर यह कदम उठाया है. बता दें कि यूएई में भारतीय मूल के लोगों की संख्या वहां की आबादी का 30 प्रतिशत है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात की आबादी का करीब दो तिहाई हिस्सा विदेशों के प्रवासी लोग हैं। जिनमें भारतीय लोगों की संख्या 26 लाख है।

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इस बारे में अबू धाबी न्याय विभाग (एडीजेडी) ने शनिवार को ही जानकारी देते हुए कहा कि उसने श्रम मामलों में अरबी और अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा को शामिल करके अदालतों के समक्ष दावों के बयान के लिए भाषा के माध्यम का विस्तार कर दिया है। एडीजेडी ने बताया कि इसका मकसद हिंदी भाषी लोगों को मुकदमे की प्रक्रिया, उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में सीखने में मदद करना है।

एडीजेडी के अवर सचिव युसूफ सईद अल अब्री ने कहा कि दावा शीट, शिकायतों और अनुरोधों के लिए बहुभाषा लागू करने का मकसद प्लान 2021 की तर्ज पर न्यायिक सेवाओं को बढ़ावा देना और मुकदमे की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य यहां काम करने वाले हिंदी भाषियों को मुकद्मों की प्रक्रिया सीखने में उनकी मदद करने के साथ-साथ उन्हें सहायता प्रदान करना है।

भारत की अदालतों में हिन्दी को अंग्रेजी के समान दर्जा नहीं

14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। लेकिन अभी तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानने को लेकर कई सारे विरोध है। यहीं कारण है कि हमारे देश की आफिसियल भाषा के रुप में हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी स्थान दिया गया है। लेकिन भारत की बड़ी अदालतों यानी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में आज भी हिन्दी को अंग्रेजी के समान दर्जा नहीं मिला।

संविधान की धारा 348 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की सभी प्रोसिडिंग को अंग्रेजी भाषा में ही किए जाने का प्रावधान है। ऐसा इस लिए है क्यों कि भारत में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. विदेशो में जिस प्रकार का सम्मान हिंदी को मिल रहा है वेसा सम्मान हिन्दी को अभी भारत में ही नहीं मिला है।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले आज भी हिन्दी या अन्य क्षेत्रिय भाषाओं में उपलब्ध नहीं होती हैं। हाल हीं में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस और इशारा किया था कि जल्द ही अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले हिन्दी और अन्य क्षेत्रिय भाषाओं में भी उपलब्ध हो सकेंगे। उन्होंने कहा भी था कि इस प्रक्रिया को लेकर काम भी शुरू हो गया है।

 

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